बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Wednesday, May 24, 2006

बदला न अपने आप को, जो थे वोही रहे..
मिल्ते रहे सभी से मगर, अजनबी रहे...
दुनिया न जीत पायो तो हारो न खुद को तुम..
थोड़ी बहुत तो जहां में, नाराज़गी रहे...
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी..
हम जिस्के भी क़रीब रहे, दूर ही रहे...
ग़ुज़रो जो बाग़ से तो दुया मांगते चलो..
जिस्मे खिलें हैं फूल वो डाली हरी रहे...


निदा फाज़ली.....

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