बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Thursday, May 25, 2006

इक रोज़..

इक रोज़ हमसे कहने लगी एक ग़ुल बदन..
ऐनक से बांध रखी है क्यों आप ने रसन (डोरी)..
मिल्ता है क्या इसी से यह अंदाज़-ऐ-फिक्र-ओ-फन..
हम ने कहा के ऐसा नहीं है जनाब-ऐ-मन..
बैठे जहां हसीं हों इक बज्मो-आम में..
रखतें हैं हम निगाह को अपनी लगाम में....


साग़र ख़य्यामी...

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