दिले नादां तुझे हुया क्या है..
आखिर इस दर्द की दवा क्या है..
हम हैं मुश्ताक ओर वो बेज़ार..
या इलाही ये माजरा क्या है...
मैं भी मुहं में ज़बान रखता हूं...
काश पूछो कि मुद्दा क्या है...
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मोजूद..
फिर यह हंगामा ऐ खुदा क्या है...
मिर्ज़ा ग़ालिब...
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