बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Tuesday, June 06, 2006

मुहब्बत के ख़त

खत मुहब्बत के बरवक्त जो मयस्सर होते ।
हां तेरे सर की कसम हम आज तेरे शोहर होते ।।
शाहज़ादी ना बिछड़ता तेरा महबूब कभी ।
डाक खाने में मुलाज़िम ग़र कबूतर होते ।।

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