बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Friday, June 09, 2006

नज़र

वो जो ऐक नज़र की जुबिश से, सब दिल की बाज़ी लूट गया ।
वो जिस से नज़रें चार हुईं ओर हाथ से साग़र छूट गया ।।
दिल उसका भी है, दिल मेरा भी, है फर्क तो बस इतना सा शकील ।
वो पत्थर था जो साबुत है, ये शीशा था जो टूट गया ।।

शकील बदायूनी....

4 Comments:

Blogger Sagar Chand Nahar said...

सुरेश जी,
हिन्दी चिठ्ठाकारी के जगत में आपका हार्दिक स्वागत है,बधाई देने आने वाले कै चिठ्ठाकरों की फ़ौज पहुँचने ही वाली है आपके पास!
सबसे पहले आपका स्वागत करने का श्रेय में खुद ही ले लेता हुँ। हिन्दी चिठ्ठा विश्व की जानकारी से अवगत होने के लिये यहाँ पधारें।
http://www.akshargram.com/narad/

7:50 AM  
Blogger Manish Kumar said...

स्वागत है नागर भाई ! शेरो‍शायरी का मुझे भी शौक है ! अच्छे शेर चुने हैं आपने अपने ब्लाग के लिये !

9:44 AM  
Blogger रवि रतलामी said...

हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है...

8:23 PM  
Blogger आलोक said...

साग़र नहीं, सागर।
संस्कृत का शब्द है।

11:31 PM  

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