वो जो ऐक नज़र की जुबिश से, सब दिल की बाज़ी लूट गया । वो जिस से नज़रें चार हुईं ओर हाथ से साग़र छूट गया ।। दिल उसका भी है, दिल मेरा भी, है फर्क तो बस इतना सा शकील । वो पत्थर था जो साबुत है, ये शीशा था जो टूट गया ।।
सुरेश जी, हिन्दी चिठ्ठाकारी के जगत में आपका हार्दिक स्वागत है,बधाई देने आने वाले कै चिठ्ठाकरों की फ़ौज पहुँचने ही वाली है आपके पास! सबसे पहले आपका स्वागत करने का श्रेय में खुद ही ले लेता हुँ। हिन्दी चिठ्ठा विश्व की जानकारी से अवगत होने के लिये यहाँ पधारें। http://www.akshargram.com/narad/
मैं क्या कहूँ अपने बारे में, बस यही की इस वक्त इनफोसिस मे काम करता हूं, कम्पयूटर पर काम करना मुझे काफी पसंद है. चंडीगड़ में रहता हूँ ओर जम्मू से ताल्लुक रखता हूं.
4 Comments:
सुरेश जी,
हिन्दी चिठ्ठाकारी के जगत में आपका हार्दिक स्वागत है,बधाई देने आने वाले कै चिठ्ठाकरों की फ़ौज पहुँचने ही वाली है आपके पास!
सबसे पहले आपका स्वागत करने का श्रेय में खुद ही ले लेता हुँ। हिन्दी चिठ्ठा विश्व की जानकारी से अवगत होने के लिये यहाँ पधारें।
http://www.akshargram.com/narad/
स्वागत है नागर भाई ! शेरोशायरी का मुझे भी शौक है ! अच्छे शेर चुने हैं आपने अपने ब्लाग के लिये !
हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है...
साग़र नहीं, सागर।
संस्कृत का शब्द है।
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