बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Friday, June 09, 2006

नज़र

वो जो ऐक नज़र की जुबिश से, सब दिल की बाज़ी लूट गया ।
वो जिस से नज़रें चार हुईं ओर हाथ से साग़र छूट गया ।।
दिल उसका भी है, दिल मेरा भी, है फर्क तो बस इतना सा शकील ।
वो पत्थर था जो साबुत है, ये शीशा था जो टूट गया ।।

शकील बदायूनी....

Tuesday, June 06, 2006

मुहब्बत के ख़त

खत मुहब्बत के बरवक्त जो मयस्सर होते ।
हां तेरे सर की कसम हम आज तेरे शोहर होते ।।
शाहज़ादी ना बिछड़ता तेरा महबूब कभी ।
डाक खाने में मुलाज़िम ग़र कबूतर होते ।।