बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Sunday, May 28, 2006

फिर से...

फिर से मोसम बहारों का आने को है, फिर से रंगे ज़माना बदल जायेगा...
अबकी बज़्म-ए-चरागां सजा लेंगे हम, यह भी अरमान दिल का निकल जायेगा...

आप कर दें जो मुझ पे निगाहे करम, मेरी उल्फत का रह जायेगा कुछ भरम..
यूं फसाना तो मेरा रहेगा वोही, सिर्फ उन्वान उस का बदल जायेगा...

फीकी-फीकी सी क्यों शाम-ए-मयखाना है, लुत्फे साकी भी कम खाली पयमाना है..
अपनी नज़रों से ही कुछ पिला दीजीये, रंग महफिल का खुद ही बदल जायेगा...

मेरे मिटने का उनको ज़रा ग़म नहीं, ज़ुल्फ भी उनकी ए-दोस्त बरहम नहीं...
अपने होने न होने से होता है क्या, काम दुनिया का यूं भी तो चल जायेगा...

आप ने दिल जो ज़ाहिद का तोड़ा तो क्या, आप ने उस की दुनिया को छोड़ा तो क्या..
आप इतने भी आखिर परेशां न हों, वो संभलते संभलते संभल जायेगा...


ज़ाहिद......

दिले नादां तुझे हुया क्या है..
आखिर इस दर्द की दवा क्या है..

हम हैं मुश्ताक ओर वो बेज़ार..
या इलाही ये माजरा क्या है...

मैं भी मुहं में ज़बान रखता हूं...
काश पूछो कि मुद्दा क्या है...

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मोजूद..
फिर यह हंगामा ऐ खुदा क्या है...

मिर्ज़ा ग़ालिब...

Friday, May 26, 2006

यू टर्न..



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श्री अशोक चक्रधर..

दिल गया

दिल गया तुमने लिया हम क्या करें...
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें....

पूरे होंगे अपने अरमां किस तरह..
शोंक बेहद, वक्त है कम, क्या करें....

बक्श दें प्यार की ग़ुस्ताखीयां..
दिल ही काबू में नही, हम क्या करें...

तुंद-खूं है कब सुने वो दिल की बात..
ओर भी बरहम को बरहम क्या करें....

एक साग़र पर है अपनी ज़िंदगी..
रफ्ता रफ्ता इस्से भी कम क्या करें....

कर चुके सब अपनी अपनी हिकमते...
दम निकलता है, ऐ-हमदम क्या करें....

मामला है आज हुस्नो-इश्क का...
देखीये वो क्या करें, हम क्या करें....

कह रहे अहले सिफारिश हम से दाग़....
तेरी किस्मत है बुरी हम क्या करें.....



दाग़ देहलवी

Thursday, May 25, 2006

इक रोज़..

इक रोज़ हमसे कहने लगी एक ग़ुल बदन..
ऐनक से बांध रखी है क्यों आप ने रसन (डोरी)..
मिल्ता है क्या इसी से यह अंदाज़-ऐ-फिक्र-ओ-फन..
हम ने कहा के ऐसा नहीं है जनाब-ऐ-मन..
बैठे जहां हसीं हों इक बज्मो-आम में..
रखतें हैं हम निगाह को अपनी लगाम में....


साग़र ख़य्यामी...

Wednesday, May 24, 2006

बदला न अपने आप को, जो थे वोही रहे..
मिल्ते रहे सभी से मगर, अजनबी रहे...
दुनिया न जीत पायो तो हारो न खुद को तुम..
थोड़ी बहुत तो जहां में, नाराज़गी रहे...
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी..
हम जिस्के भी क़रीब रहे, दूर ही रहे...
ग़ुज़रो जो बाग़ से तो दुया मांगते चलो..
जिस्मे खिलें हैं फूल वो डाली हरी रहे...


निदा फाज़ली.....

Friday, May 19, 2006

जूते

इक शाम किसी बज़्म में जूते जो खो गये..
हम ने कहा बताईये घर कैसे जाऐंगे...
कहने लगे के शेर बस कहते रहो युहीं....
गिनते नहीं बनेंगे अभी इतने आऐंगे.....

साग़र खय्यामी....

Tuesday, May 16, 2006

बेसबब तो न थी तेरी यादें........

बेसबब तो न थी तेरी यादें..
तेरी यादो से कया नही सीखा ...
जब्त का हौसला बारहा लेना....
आँसुंओं को कभी छुपा लेना....
चुप की चादर को औढ कर सोना...
बेसबब भी कभी कभी हसना...
जब भी हो बात कोई तेरी मेरी...
मौजु-ए-गुफतगु बदल देना...
बेसबब तो न थी तेरी यादें..
तेरी यादो से कया नही सीखा ...

पहला शेर

कीजो ग़ालिब मुझे तल्खनवाई से माफ,
आज सीने मे मेरे दर्द सा होता है.....