बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Monday, April 09, 2007

आफत की शोख़ियां हैं..

आफत की शोख़ियां है तुम्हारी निगाह में...
मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में..

आती है बात बात मुझे याद बार बार..
कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..

मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे..
ऐ-दाग़ तुम तो बैठ गये ऐक आह में....

दाग़ देहलवी...