बस कुछ लिखना चाहता हूं.

Tuesday, October 17, 2006

अपना ग़म लेके कहीं ओर न जाया जाऐ,

अपना ग़म लेके कहीं ओर न जाया जाऐ,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सवाँरा जाऐ..

जिन चराग़ों को हवाओं का कोई ख़ोफ़ नहीं
उन चराग़ों को हवाओं से बचाया जाऐ..

ब़ाग़ में जाने के आदाब हुया करते है,
किसि तितली को न फूलों से उड़ाया जाये..

खुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
ओर कुछ दिन युहीं ओरों को सताया जाऐ..

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें,
किसि रोते हुये बच्चे को हँसाया जाऐ...

निदा फाज़ली...

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